1. प्रतिकूल कब्जे का तर्क भी साबित नहीं हुआ है।2. अतः प्रतिवादीगण प्रश्नगत सम्पत्ति पर प्रतिकूल कब्जे के अधार पर स्वामी हो गये है। 3. जहां यह अवधारित है कि प्रतिकूल कब्जे के दावे में स्वत्व का विवाद नहीं है। 4. जैसा कि सर्वविदित है कि कब्जे का आशय ही प्रतिकूल कब्जे का आवश्यक तत्व है। 5. इसके अलावा दौरान चकबन्दी प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वत्व की घोषणा कराना भी अनिवार्य है। 6. वादिनी ही लगातार कब्जे में है और उसका अधिकार प्रतिकूल कब्जे के आधार पर परिपक्व हो चुका है। 7. इस प्रकार वादी मूल स्वामी जिसके विरूद्व प्रतिकूल कब्जे का दावा करता है उसे उसका नाम नहीं पता है। 8. प्रतिकूल कब्जे के आधार पर दावे में दो तत्व आवश्यक है-(1) प्रतिवादी का कब्जा वादी के प्रतिकूल होना चाहिये।9. राजस्व अभिलेखों में कही भी अपीलार्थी / अध्यासी के प्रतिकूल कब्जे की इन्द्राजी नहीं है, जिससे प्रतिकूल कब्जा सिद्ध होता हो। 10. क्या वादी के अधिकार वादग्रस्त भूमि पर प्रतिकूल कब्जे के आधार क्या लीज दिनांकित 1-2-1955 शून्य है, यदि हां तो इसका प्रभाव?